सत्ता में आने के पश्चात हर सरकार करती है बड़े-बड़े दावे
Education system पर पिछले 15 सालों के विश्लेषण….
Education system को लेकर हमेशा ही सत्ता में आने वाली पार्टी बड़े-बड़े दावे करने के साथ-साथ ऐसे ऐसे आंकड़े पेश करती है कि हर कोई प्रभावित होने लग जाता है कि इस सरकार से ज्यादा अच्छा कार्य शिक्षा प्रणाली में किसी ने आज तक किया ही नहीं है जबकि वह (Education system) एक ऐसा सफेद झूठ होता है, जिसे हर कोई सच मानने को तैयार हो जाता है।
कुछ ऐसा ही पिछले 15 सालों में पंजाब में दिखाई दे रहा है। 10 साल शिरोमणि अकाली दल की सरकार और 5 साल कांग्रेस की सरकार के दौरान कुछ ऐसे (Education system) को लेकर ही दावे और तथ्य पेश किए गए परंतु सरकारी स्कूलों में शिक्षा को लेकर कोई भी ज्यादा असर या फिर प्रभाव आज तक नजर नहीं आया. हालांकि शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान पंजाब में बड़े स्तर पर स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम हुआ है. परंतु अध्यापकों की भर्तियों से लेकर शिक्षा के म्यार तक अकाली दल भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाया था।
ऐसा ही कुछ अब मौजूद आम आदमी पार्टी की सरकार में भी ऐसा ही चल रहा है. पिछले डेढ़ साल के दौरान Education system को लेकर बड़े-बड़े दावे तो किया जा रहे हैं, परंतु असल सच्चाई उससे कोसों दूर नजर आ रही है। आज हम पिछले 15 सालों में शिक्षा प्रणाली (Education system) को लेकर पंजाब में हुए बदलाव पर चर्चा करने जा रहे है।
शिरोमणि अकाली दल की 10 साल की सरकार में बिल्डिंगे बनी, खड़ा नही हुया शिक्षा का ढांचा
शिरोमणि अकाली दल की 2007 से लेकर 2017 तक की सरकार के दौरान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा शिक्षा (Education system) में सुधार को लेकर काफी ज्यादा कोशिश की गई. उनकी सरकार के दौरान 5 से ज्यादा कैबिनेट मंत्री शिक्षा विभाग में बदलें गए और सभी ने अपने पिछले कैबिनेट मंत्रियों से ज्यादा काम करने और शिक्षा में क्रांति लाने का दावा किया. परंतु ना ही Education system में इसी तरह की क्रांति आई और ना ही शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान सरकारी स्कूलों का ग्राफ उस स्तर तक पहुंचा यहां तक हर कोई देखना चाहता है।
हालांकि शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान meritorious school का कॉन्सेप्ट शुरू हुआ था, जो कि आज भी चल रहा है और इस स्कूलों से बहुत अच्छे बच्चे बाहर निकाल कर आए हैं और आज बड़े अधिकारी भी बन रहे है। परंतु यह meritorious school Education system एक सीमित दायरे तक ही रह गया, जबकि पूरे पंजाब में इस तरह की कोई क्रांति नहीं आई।
शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान अलग-अलग शिक्षा मंत्री द्वारा दावा किया गया कि उनके समय काल के दौरान सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की गिनती के बढ़ने के साथ-साथ शिक्षा में भी सुधार आया है. परंतु आज तक वह शिक्षा का सुधार दिखाई नहीं दिया है। Education system
कांग्रेस राज्य में सरकारी स्कूलों Education system का रहा बुरा हाल
कांग्रेस सरकार के 5 साल की कार्यकाल में भी Education system को लेकर किसी भी तरह की क्रांति नजर नहीं आई. हालांकि इस दौरान शिक्षा मंत्री विजय इंद्र सिंगला और शिक्षा सेक्रेटरी कृष्ण कुमार द्वारा बड़े-बड़े दावे किए गए कि जैसा काम उन्होंने किया है. वैसा आज तक शिक्षा में हुआ ही नहीं है। असल में वह काम भी सिर्फ कागजों में ही सीमित नजर आया क्योंकि निचले स्तर पर किसी भी तरह का ऐसा इंपैक्ट नजर ही नहीं आया। आज भी पंजाब में जिस व्यक्ति के पास जरूरत अनुसार पैसे हैं।
वह किसी भी हालत में अपना बच्चा सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता है। यहां तक की गरीब से गरीब व्यक्ति भी इसी कोशिश में रहता है कि वह अपनी मेहनत की कमाई से अपने बच्चों को किसी अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई करते हुए कुछ स्तर की शिक्षा दिलवा पाए। जिसको देखकर ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंजाब के सरकारी स्कूलों के Education system पर मिडिल क्लास तो क्या गरीब परिवार भी विश्वास नहीं कर पा रहा है। कांग्रेस सरकार के दौरान सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की गिनती कम ही हुई है, जबकि उनके दावे इससे उलट रहते नजर आए है।
डेढ़ साल में आम आदमी पार्टी नही कर पाई कोई खास सुधार
पिछले डेढ़ साल के दौरान आम आदमी पार्टी द्वारा 2 शिक्षा मंत्री बदल दिए गए ताकि Education system में बड़े स्तर पर सुधार लाया जा सके हालांकि स्कूल ऑफ इमीनेंस की शुरुआत इस सरकार के दौरान की गई है परंतु सिर्फ स्कूलों को रंग रोगन करने और उनके नाम बदलने से शिक्षा में सुधार नहीं हो सकता है। ऐसा काम तो पिछली सरकारों द्वारा भी किया गया है किसी ने मेरीटोरियस स्कूल बनाए तो किसी ने स्मार्ट स्कूल का नाम दिया। अब उन्हें स्कूलों का नाम स्कूल ऑफ इमीनेंस देखा जा रहा है।
शिक्षा में सुधार उसे समय तक नहीं आ सकता जब तक ग्राउंड स्तर पर काम ना किया जा सके जबकि अभी तक चंडीगढ़ में बैठकर ही प्लानिंग बनाने के साथ-साथ बिना अध्यापकों और विद्यार्थियों से चर्चा किया नई-नई स्कीमों को लागू करने की कोशिश की जा रही। पिछली सरकारों जैसे ही आम आदमी पार्टी की सरकार भी अभी तक चंडीगढ़ में बैठकर ही नई स्कीम लागू करने में लगी हुई है, जबकि यह कामयाब होना मुश्किल ही है नही बल्कि नामुमकिन सा लग रहा है.
बिजली के पैसे को तरसते हैं पंजाब के सरकारी स्कूल
शिक्षा क्रांति में यह एक दुःखद पहलू है कि पंजाब के सरकारी स्कूल आज भी बिजली का कनेक्शन लेने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं क्योंकि सरकार की तरफ से आज तक बिजली का बिल भरने के लिए कोई परमानेंट फंड का इंतजाम नहीं किया गया है. कभी बिजली के बिल किसी से मांग कर भरें जाते हैं तो कभी बिजली के बिल अध्यापक अपनी जेब से भरते हैं। पिछली सभी सरकारों द्वारा इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया।
Education system : वर्दी के नाम पर मजाक करती आई है सरकारें
पंजाब में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मुफ्त में वर्दी देने का दावा करने के साथ-साथ उसका राजनीतिक फायदा लेने के लिए किसी कोई भी सरकार पीछे नहीं हटी है, जबकि असर सच्चाई है कि सरकारी स्कूलों में वर्दियों को बांटने के नाम पर सिर्फ विद्यार्थियों के साथ मजाक ही किया जाता रहा है।
केंद्र सरकार की तरफ से आने वाले फंड में अपना कुछ हिस्सा मिलते हुए पंजाब सरकार मात्र 600 रुपये के करीब विद्यार्थियों को भेज देती है कि वह इस 600 रुपये से सर्दी गर्मी की वर्दी के साथ-साथ विद्यार्थी अपने लिए बूट और जुराबे भी खरीद ले। हैरानी की बात यह है कि आज के जमाने में मात्र 600 रुपये में एक जोड़ी वर्दी ना मिले तो वहीं पर सरकार बड़ी लंबी चौड़ी लिस्ट के साथ मात्र 600 रुपये भेज देती है कि इससे वर्दी को खरीद दिया जाए।
ना अध्यापक और ना ही अधिकारी का बच्चा जाता है सरकारी स्कूल
वह संस्था उस समय तक कामयाब नही हो सकती है, जब तक उसे सरकारी संस्था में काम करने वाले ही उस संस्था पर विश्वास न करने लगे। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अध्यापक से लेकर नॉन टीचिंग स्टाफ व शिक्षा विभाग के अधिकारियों से लेकर राजनीतिक लीडरों के बच्चे कभी भी सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं जाते। क्योकि उन्हें ही अपने खुद के Education system पर विश्वास नहीं है.
इन सभी द्वारा अपने बच्चों को किसी भी हालत में सरकारी स्कूल में नहीं भेजा जाता है और अपने शहर में बड़े से बड़े प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की कोशिश की जाती है। इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस स्कूल को चलाने वाले अध्यापक नॉन टीचिंग स्टाफ और शिक्षा विभाग के अधिकारियों सहित सरकार में मंत्री अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते तो उन सरकारी स्कूलों को अच्छा कैसे कहा जा सकता है ?
शिक्षा मंत्री के सहित विधायकों और डीसी के बच्चे पड़े सरकारी स्कूलों में तो ही होगा सुधार
सरकारी स्कूलों में अगर किसी भी तरीके से सुधार लाना है तो चंडीगढ़ में बैठकर कागजी प्लानिंग बनाने की जगह सरकार को एक आदेश पारित करना होगा कि शिक्षा मंत्री सहित सभी कैबिनेट मंत्री और विधायकों को अपने घर के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य होगा। इसके सहित डिप्टी कमिश्नर, एसएसपी और जिले से संबंधित सभी पुलिस व प्रशाशनिक अधिकारीयों सहित कर्मचारियों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने अनिवार्य होना चाहिए।
अगर ऐसा कोई कानून पंजाब सरकार लेकर आती है तो उसके पश्चात ही शिक्षा में क्रांति नजर आ सकती है अन्यथा जैसा पिछले कई दशकों से चला आ रहा है, आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा। क्योंकि जब अध्यापकों और नॉन टीचिंग स्टाफ के साथ-साथ जिले के सभी अधिकारियों मंत्रियों व विधायकों की बच्चे सरकारी स्कूलों में जाएंगे तो उनका खुद का भी इंटरेस्ट रहेगा कि उसे स्कूल में ज्यादा से ज्यादा सुधार हो इसी इंटरेस्ट के चलते ही सरकारी स्कूलों में सुधार हो सकता है।
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