PGI Chandigarh : करोड़ो रुपये में हर साल बोली में दी जाती है केमिस्ट की दुकान
PGI Chandigarh में सस्ती दवाई कैसे मिलेगी ? इस बात को लेकर ही सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि पीजीआई के इमरजेंसी में दवाई की दुकान किराए पर लेने वाले केमिस्ट मलिक को ही हर महीने दो करोड रुपए के करीब किराया देना पड़ रहा है। जो दवाई बेचने वाला केमिस्ट मालक 2 करोड़ रुपये के करीब महीना किराया देगा, तो वह इस किराए के साथ-साथ अपने कर्मचारियों की तनख्वाह वह खुद की कमाई भी आपकी जेब में से ही निकलने वाला है। ऐसे में यह सवाल बार-बार खड़ा हो रहा है कि जिस केमिस्ट दुकानदार को ही हर महीने 2 करोड़ पर खर्च करना पड़ रहा हो वह आपकी जेब में से कितना पैसा निकल रहा होगा।
PGI Chandigarh में इलाज करवाने आते है 3 राज्यों के लोग
जानकारी अनुसार PGI Chandigarh में हरियाणा पंजाब और हिमाचल सहित चंडीगढ़ के मरीजों को बड़े स्तर पर इलाज देने वाले पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) के इमरजेंसी में एक केमिस्ट शॉप चल रही है., जो कि अब बंद होने की कगार पर भी पहुंच चुकी है। उक्त केमिस्ट शॉप के संचालक द्वारा इस सरेंडर करने के लिए पीजीआई के प्रबंधन विभाग को पत्र लिखा गया है.। उनका कहना है कि वह हर महीने 1 करोड़ 80 लाख रुपए किराया दे रहे हैं जो कि अब इस केमिस्ट की दुकान से निकल पाना मुश्किल हो रहा है. क्योंकि इसके अलावा उनके मुलायमों की तनख्वाह व अन्य खर्च भी लगने के पश्चात यह खर्च दो करोड़ पर के पार जा रहा है. ऐसे में इतना खर्च दवाइयां बचकर निकल पाना ही मुश्किल हो पा रहा है।
पीजीआई के इमरजेंसी में इस दुकानदार द्वारा सरेंडर करने के पश्चात यह बात सामने आई है कि इलाज के नाम पर ही दवाइयां की दुकान से इतना पैसा द्वारा इकट्ठा किया जा रहा है।. जो कि किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि इतना किराया देने वाला दवाई का दुकानदार सारा खर्च मरीजों की जेब से ही निकलेगा।.
गरीब मरीजों पर क्यों पड़ रही है इतनी मार
पीजीआई में वह ही मरीज इलाज करवाने लिए पहुंचता है, जो कि आर्थिक रूप से गरीब हो या फिर उसे किसी अन्य अस्पताल में अच्छा इलाज नहीं मिल रहा हो. ऐसे में इन गरीब या जरूरतमंद मरीज को महंगी दवाई देकर उन्हें आर्थिक रूप से मार डाली जा रही है।. दुकानदार द्वारा अपना खर्च निकालने के लिए महंगी दवाई बेचना की एक जरिया है जिसके चलते गरीब मरीजों पर इतनी मार पढ़ना भी स्वाभाविक है।. ऐसे में केंद्र सरकार और पीजीआई के प्रबंधन विभाग को सोचना चाहिए कि गरीबों वह जरूरतमंद पर ऐसी मार डालने की जगह उन्हें अपने स्तर पर इसका इंतजाम करना चाहिए।.
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