सुविधा या असुविधा : नई मुआवज़ा पॉलिसी: सबूतों की दीवार के आगे हो सकते है पीड़ित बेबस

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की फटकार के बाद पंजाब सरकार ने आवारा जानवरों के हमले से होने वाली मौतों और हादसों पर मुआवज़ा देने की नई पॉलिसी तो जारी कर दी, लेकिन यह पॉलिसी पीड़ितों के लिए राहत से ज्यादा सिरदर्द बनकर आई है। अब किसी भी हमले के मामले में मुआवज़ा पाने के लिए पीड़ित परिवार को यह लोहे की चट्टान जैसा सबूत पेश करना होगा कि मौत सिर्फ़ आवारा जानवर की वजह से हुई—ज़रा सी भी अलग वजह सामने आई, तो मुआवज़ा सीधे खारिज।
नीति के मुताबिक, पीड़ित परिवारों को दर्जनों डॉक्यूमेंट, मेडिकल रिपोर्ट, पुलिस रिकॉर्ड, गवाहों के बयान और मौके की डिटेल तक पेश करनी होगी। अगर अधिकारी किसी भी सबूत से संतुष्ट नहीं हुए, तो एक पैसा नहीं मिलेगा। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अगर व्यक्ति जानवर के हमले में बच गया, लेकिन उसकी फिजिकल चोट 70% से कम है, तो उसे न इलाज का खर्च मिलेगा, न मुआवज़ा—पूरा खर्च खुद उठाना पड़ेगा।
सरकार ने मुआवज़ा राशि तय की है: मौत पर 5 लाख रुपये, स्थायी अपंगता पर 2 लाख, और कुत्ते के काटने पर चोट के हिसाब से 10,000 से 20,000 रुपये। लेकिन यह रकम पाने के लिए साबित करना पड़ेगा कि हमला वास्तव में आवारा या जंगली जानवर ने ही किया था—पीड़ित या परिवार के बयान को सबूत नहीं माना जाएगा।
जांच के लिए ज़िला स्तर पर कमेटी बनाई जाएगी, जो डॉक्यूमेंट खंगालेगी, मौके का मुआयना करेगी और यह तक जांचेगी कि पीड़ित के पास ड्राइविंग लाइसेंस था या नहीं, हेलमेट पहना था या नहीं, और घटना के समय वह नशे में तो नहीं था। किसी भी तरह की लापरवाही दिखी, तो मुआवज़ा रद्द।
नई पॉलिसी यह भी साफ कर देती है कि मेडिकल या पुलिस डॉक्यूमेंट तभी मान्य होंगे, जब उनमें साफ-साफ लिखा हो कि हादसे का कारण आवारा जानवर था—अगर यह ज़िक्र ही नहीं है, तो मुआवज़ा मिलने की उम्मीद भी खत्म।
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