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इनफार्मेशन : SIR बनाम SSR: मतदाता सूची सुधार की दो प्रक्रिया, जानिए क्या है फर्क

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चुनाव आयोग की दो अहम कवायद, एक नियमित तो दूसरी असामान्य हालात मेंपंजाब के तरनतारन के चुनाव को लेकर SIR के आदेश हुए है या नहीं हुए है, इस पर आज चर्चा चल रही है परन्तु यहाँ यह समझना पड़ेगा कि आखिर SIR क्या है और कैसे काम करता है l पंजाब में SIR नही बल्कि SSR के आदेश हुए है और शायद दोनों को मिक्स किया जा रहा है, इस लिए हम दोनों में आप फर्क बता रहे है और इस से आपको पूरी जानकारी भी मिल जाएगी lबिहार चुनाव को लेकर SIR काफी ज्यादा बोलने वाला शब्द भी बन गया परन्तु फिर भी इसकी जानकारी काफी लोगो को है l आइये हम इसको समझते है lभारत के लोकतंत्र में मतदाता सूची (Voter List) सबसे अहम दस्तावेज मानी जाती है। सही और अद्यतन वोटर लिस्ट चुनाव की विश्वसनीयता की गारंटी होती है। इसी कारण चुनाव आयोग समय-समय पर मतदाता सूची को सुधारने और दुरुस्त करने की कवायद करता है। इसमें दो शब्द सबसे ज्यादा सुनने को मिलते हैं – स्पेशल समरी रिवीजन (Special Summary Revision – SSR) और स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision – SIR)। दोनों का मकसद एक ही है – सही वोटर लिस्ट तैयार करना, लेकिन तरीका और स्थिति बिल्कुल अलग होती है।SSR: हर साल की रूटीन अपडेटSSR चुनाव आयोग की नियमित वार्षिक प्रक्रिया है।हर साल तय कट-ऑफ डेट तक जिनकी उम्र 18 साल पूरी होती है, वे वोटर लिस्ट में नाम जुड़वा सकते हैं।इसमें गलत नाम हटाए जाते हैं और पता बदलने वालों को नए पते पर शिफ्ट किया जाता है।SSR के लिए आयोग ने चार मुख्य फॉर्म तय किए हैं:Form-6: नया नाम जोड़ने के लिएForm-7: मृतक/गलत नाम हटाने के लिएForm-8: जानकारी सुधारने के लिएForm-8A: पते के बदलाव के लिएSSR का सीधा मकसद है – हर योग्य मतदाता को सूची में शामिल करना।SIR: जब वोटर लिस्ट पर उठने लगें सवालSIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन एक असामान्य परिस्थिति में की जाने वाली कवायद है।जब किसी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर फर्जी नाम, डुप्लीकेट एंट्री, गलत पते या राजनीतिक विवाद की शिकायत मिले, तो आयोग गहन जांच का आदेश देता है।इसमें BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर हर मतदाता का रिकॉर्ड चेक करते हैं।कई बार पूरी की पूरी वोटर लिस्ट का नया ड्राफ्ट रोल तैयार किया जाता है।SIR को इस तरह समझें:SSR = सालाना सामान्य जांचSIR = असामान्य परिस्थिति मेंक्यों है फर्क जानना जरूरी?अगर SSR न हो, तो लाखों नए वोटर चुनाव से वंचित रह जाएंगे।अगर SIR न हो, तो गड़बड़ियों और फर्जी नामों से चुनाव की पारदर्शिता खतरे में पड़ सकती है।SSR लोकतंत्र की निरंतर मजबूती सुनिश्चित करता है, जबकि SIR उसकी विश्वसनीयता की रक्षा करता है।निचोड़संक्षेप में कहें तो SSR नियमित सालाना अभ्यास है, जबकि SIR विशेष हालात में उठाया गया असाधारण कदम। दोनों प्रक्रियाएं मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि भारत की मतदाता सूची न सिर्फ अप-टू-डेट रहे, बल्कि फर्जीवाड़े से भी मुक्त हो। यही कारण है कि इन दोनों के बीच का फर्क समझना हर नागरिक के लिए जरूरी है।

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